Castism and discrimination in India
अभी नई आई फिल्म आर्टिकल 15 की बड़ी चर्चा हैयह फिल्म जाति के आधार पर होने वाली हिंसा पर आधारित है
जाति सिर्फ भारत में है
भारत में इसका आधार ब्राह्मणों द्वारा बनाया गया धर्म है
जाति और वर्ण का ज़िक्र ऋग वेद और मनु स्मृति में मिलता है
ब्राह्मण ग्रंथों में ही चूंकि वर्ण व्यवस्था का जिक्र हुआ है
ब्राह्मण ग्रंथों ऋग्वेद और मनु स्मृति के अलावा भारत के अन्य पंथों में जातिवाद का ज़िक्र नहीं है
भारत के बौद्ध दर्शन में जाति नहीं है
भारत के जैन दर्शन में जाति नहीं है
इसलिए जातिवाद को ब्राह्मणवाद भी कहा जाता है
लेकिन अब जाति व्यवस्था की रक्षा सिर्फ ब्राह्मणों के द्वारा नहीं करी जाती
अब हरेक जाति वाला अपनी जाति की रक्षा करता है
कोई भी अपनी जाति छोड़ने को तैयार नहीं है
क्योंकि भारत की जाति व्यवस्था सीढ़ीदार है
यहाँ हरेक जाति वाला खुद को किसी दूसरी जाति से बड़ा समझता है
ब्राह्मण क्षत्रीय से ऊंचा है
क्षत्रीय वैश्य से ऊंचा है
वैश्य शूद्र से ऊंचा है
जाटव बाल्मीकी से ऊंचा है
बाल्मीकि धोबी से ऊंचा है
धोबी नाइ से ऊंचा है
तो सब अपने को किसी ना किसी से ऊंचा समझते हैं
और इस ऊंचेपन की रक्षा करते हैं
लोग अपनी जाति में शादी करते हैं
अपनी ही जाति के साथ उठना बैठना खाना पीना करते हैं
गावों में अक्सर जातियों के आधार पर झगड़े और हिंसा होती है
बिहार हरियाणा राजस्थान और उत्तर प्रदेश में दलितों के घर जलाना महिलाओं से बलात्कार उनकी पिटाई के किस्से अखबारों में हम सब पढ़ते रहते हैं
आदिवासी महिला सोनी सोरी के गुप्तांगों में पुलिस अधिकारी ने पत्थर भर दिए उसे आज तक सज़ा नहीं हुई बल्कि भारत के राष्ट्रपति ने उस पुलिस वाले को वीरता पुरस्कार दिया
राजस्थान की भंवरी देवी के साथ गाँव के दबंग पुरुषों ने बलात्कार किया
लेकिन कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया कि बड़ी जाति के पुरुष तो नीची जातिकी महिला को छू ही नहीं सकते
अब वह मामला सर्वोच्च न्यायालय में है
भंवरी देवी पच्चीस सालों से न्याय का इन्त्ज़ार कर रही है
कुछ लोग यह कहते हैं कि जाति तो पेशे के अनुसार बनी हैं
तो दुनिया के अन्य हिस्सों में भी सभी पेशे होते हैं
लेकिन कहीं भी जाति नहीं होती
कुछ लोग कहते हैं कि एक भाइ जो ज्ञान की खोज करता था वह ब्राह्मण कहलाता था
जो युद्ध करता था वह क्षत्रीय कहलाता था
जो व्यापार करता था वह वैश्य कहलाता था
और जो सेवा करता था वह शूद्र कहलाता था
लेकिन ऐसा नहीं हो सकता
क्योंकि अगर यह बात सच होती तो अलग अलग जातियों में इतना भेदभाव और नफ़रत ना होती
यहाँ तो एक तथाकथित नीची जाति का युवक अगर दूसरी तथाकथित ऊंची जाति की लडकी से प्यार कर ले तो उसकी पूरी बस्ती जला दी जाती है
दुनिया भर में लड़के लड़कियां खुद ही अपनी शादी के लिए अपना साथी पसंद करते हैं
सिर्फ भारत में इसका फैसला परिवार करता है
वो भी मुख्यतः यह सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करते हैं कि शादी अपनी ही जाति में हो रही है या नहीं
भारत में जाति का आधार धर्म है
इसलिए हिन्दू जाति को अपना पहला आधार मानते हैं
लेकिन ऐसा नहीं है कि जाति सिर्फ हिन्दुओं में ही है
भारत में जितने भी धर्म हैं उनमें शामिल ज़्यादातर लोग पह्ले हिंदु ही थे
इसलिए भारतीय मुसलमानों में भी जाति मौजूद है
ईसाईयों में भी है
और सिक्खों में भी है
इस मुद्दे पर हमारे मित्र स्टालिन ने इंडिया अनटच्ड डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई है
इस डाक्यूमेंट्री का एक हिस्सा आमिर खान के टीवी शो में भी दिखाया गया था और स्टालिन से बातचीत भी प्रसारित करी गई थी
जाति का नुकसान क्या है ?
पह्ला नुकसान यह है कि जब एक इंसान दुसरे इंसान को जाती के आधार पर देखता है तो उसे या तो खुद से नीचा समझता है या ऊंचा समझता है
जबकि लोकतंत्र का पहला नियम यह है कि सभी इंसान बराबर हैं
तो जाति और लोकतंत्र एक साथ नहीं रह सकते
या तो देश में लोकतंत्र रहेगा या जाति रहेगी
अगर आप जाति और लोकतंत्र को एक साथ चलाएंगे तो वह लोकतंत्र के नाम पर ढोंग होगा
या कहें तो वह नकली लोकतंत्र होगा
लोग कहते हैं जाति सिर्फ गाँव के अनपढ़ लोगों में बची है
लेकिन यह झूठी बात है
आप दिल्ली मुम्बई में चले जाइये जैसे ही उन्हें पता चलेगा कि आप दलित हैं वे बहाना बना कर आपको मकान देने से मना कर देंगे
इसके अलावा अब मकान मिलने में मुसलमानों को भी दिक्कत होने लगी है
क्योंकि भारत के हिन्दू जानते हैं कि बहुत सारे भारतीय दलित बराबरी की खोज में मुसलमान बने थे
इसलिए राम मनोहर लोहिया कहते थे कि जिसदिन भारत से जातिवाद समाप्त होगा उस दिन साम्प्रदायिकता भी समाप्त हो जायेगी
क्योंकि भारत के अधिकाँश सवर्ण मुसलमानों को अछूत ही मानते हैं
दुनिया भर के धर्म चाहते हैं कि दुसरे धर्मों केलोग हमारे धर्ममें शामिल हो जाएँ
लेकिन सिर्फ भारत के हिन्दू धर्म के अनुयायी अपने ही धर्म के लोगों से नफरत करते हैं
जाति ने भारत का नैतिक पतन कर दिया है
आप दुनिया के अन्य देशों में जायेंगे तो वहाँ नागरिक का सम्मान किया जाता है
लेकिन भारत में एक नागरिक दुसरे नागरिक को ही सम्मान देने के लिए ही तैयार नहीं है
नागरिकों के लिए यह हिकारत आपको सरकारी विभागों के व्य्व्हार में पुलिस के नागरिकों के साथ व्यवहार में या अदालत के नागरिक अधिकारों के मामले में साफ़ दीखता है
अन्य देशों में पुलिस हिरासत में नागरिक को पीट नहीं सकती
लेकिन भारत में पुलिस नागरिकों को जितना चाहे पीट सकती है
आज तक किसी न्यायालय ने किसी पुलिस अधिकारी से यह नहीं पूछा कि आपने किस कानून के अंतर्गत इस नागरिक की पिटाई करी है
इसका कारण है कि सदियों के जातिवाद ने भारत के पुलिस जज वकील सबके दिमाग़ में भर दिया है कि एक कमज़ोर गरीब या छोटी जाति के नागरिक को पीटा जाना कोई अनोखी बात नहीं है
इसी तरह दुनिया में साइकिल सवार को कार वाला पहले निकलने देगा
लेकिन भारत में कार वाले की नज़र में साइकिल वाले की हैसियत कीड़े मकोड़े से ज़्यादा नहीं है
इसका कारण भी भारत में सदियों से दिमागों में भरा वही असमानता का सस्कार है
दलितों को गरीब भी बना कर रखा गया
मनुस्मृति में लिखा गया है कि यदि कोइ शूद्र धन कमा ले तो राजा का कर्तव्य है कि वह उस शूद्र का धन छीन ले
इसलिए भारतीय मन गरीबों और दलितों को एक ही श्रेणी में रखता है
और अगर गरीब दलित भी हो तो वह तो दोगुने दमन का शिकार बनेगा
आज भारत में मजदूरों को आठ घंटे की जगह बारह घंटे काम करवाया जा रहा है
यह गैर कानूनी है
न्यूनतम वेतन से कम पर काम करवाया जा रहा है
लेकिन कोई रोकने वाला नहीं है
श्रम विभाग के अधिकारियों ने मुझे बताया कि सरकार ने हमसे कहा है कि आपने कहीं नहीं जाना है और किसी व्यापारी या उद्योगपति को परेशान नहीं करना है
हमारी केंद्र सरकार और राज्य सरकारें भारत के करोड़ों आदिवासियों की ज़मीनों को हडपने के लिए हमारे सुरक्षा बलों को इस्तेमाल कर रही हैं
इस के लिए आदिवसियों की हत्याये उन्हें जेलों में ठूंसना महिलाओं से बलात्कार किये जा रहे हैं
सुरक्षा बलों में भी गरीब घरों के नौजवान हैं
गरीब गरीब को मार रहा है
अमीर का फायदा हो रहा है
देश के संसाधनों का देश के सभी नागरिकों के हित में इस्तेमाल करने का सिद्धांत की कोइ बात ही नहीं कर रहा है
जबकि यह संविधान में लिखा है
लेकिन जो संविधान की याद दिला रहे हैं उन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया है
अगर भारत को संविधान कानून और न्याय के आधार पर चलना है
तो भारत को सभी नागरिकों की समानता की बात स्वीकार करनी ही पड़ेगी
सिर्फ राजनैतिक भाषणों फेसबुक पोस्टों ही में नहीं
बल्कि असल ज़िन्दगी में भी मानना पड़ेगा कि मुसलमान हिन्दू के बराबर है
ब्राह्मण जाटव और बाल्मीकी के बराबर है
अडानी और बस्तर का आदिवासी एक बराबर है
सबके अधिकार हैसियत और इज्ज़त बराबर हैं
―
Lower class people are oppressed even today. The practice of distinction of caste & creed.
ReplyDelete